Satluj Valley In Himachal Pradesh
||Satluj Valley In Himachal Pradesh ||Satluj Valley In HP ||
सतलुज घाटी (SATLUJ VALLEY) :
सतलुज नदी के तिब्बत से भारतीय भूमि में 'शिपकिला' नामक स्थान पर प्रवेश करते ही यह घाटी शुरू हो जाती है और बिलासपुर तक फैली हुई है। सतलुज नदी के किनारे पर फैली इन घाटियों की श्रृंखला को ही सतलुज घाटी के नाम से जाना जाता है। यह घाटी जाँसकर, बृहद हिमालय, पीरपंजाल, धौलाधार पर्वत श्रृंखला को काटती हुई पंजाब के मैदानों तक पहुंचती है। बिलासपुर, रामपुर, भावा आदि प्रमुख नगर जो इस नदी के किनारे पर बसे हैं, इस घाटी के प्रमुख स्थल हैं। सतलुज घाटी वर्तमान में हिमाचल प्रदेश की आर्थिकी में महत्वपूर्ण योगदान दे रही है, जहां कई जल विद्युत परियोजनाएं लगाई जा रही हैं। सतलुज के दोनों ओर का क्षेत्र कृषि प्रधान है। यहां गाय, भैंस, बैल, भेड़-बकरी सभी प्रकार के पशु लोग पालते हैं। सतलुज के पास बसे ग्रामों के लोग आज भी जरसी गाय और कृत्रिम गर्भाधान द्वारा व्याही हुई गाय का दूध-घी देवपूजा अनुष्ठान आदि में प्रयोग में लाते हैं। चीता, भालू जैसे हिंसक जीव भी यहां के जंगलों में रहते हैं। तो ककड़, बारहासिंगा जैसे हिरण से मिलते जुलते प्राणी भी, जो सीधे सादे डरपोक होते हैं। शशक जैसे चालाक प्राणी भी यहां रहते हैं। सर्प, गोधा, सराल जैसे लघु से भीमकाय तक के सरीसृप भी यहां पर्याप्त मात्रा में पाये जाते हैं। घाटी के ऊपरी क्षेत्र में कस्तूरी मृग भी रहते हैं। मत्स्य जीवन सर्वत्र उपलब्ध है।
शतद्रु के साथ लगने वाले ऊँचे पहाड़ों पर चीड़, देवदार, रई, कैल आदि वृक्ष भी कम नहीं और इसी के किनारे निम्न क्षेत्रों में तून, चूई, खैर, पलाश, एरण्ड और किंशुक (ढाक), शुहर के पेड़ भी हैं। दुग्धमय पशुओं के चारे से सम्बन्धित खड़क, खड़की और ब्यूहल के वृक्ष भी यहां सतलुज के निम्न क्षेत्रों में तत्तापानी तक प्राप्त होते हैं। जंगली फल भी यहां इस घाटी के इधर-उधर होते हैं। घांईं, कांगू आदि मीठे और स्वादिष्ठ फल भी होते हैं। बेर भी यहां पर्याप्त हैं। ऋषि मुनि यहां साधना करते समय अनादि काल से इनका प्रयोग करते रहे हैं। इनमें आज के सेब, नाशपाती और अन्य कई विदेशी जातियों के फलों से कहीं अधिक स्वाद और शक्ति विद्यमान है। शतद्रु के आस-पास मयूर, तीतर, बटेर, चिड़ियां, टिटिभ, मटोलड़ी, जंगली मुर्गे, मोनाल, कठफोड़े, कौए, क्रांई आदि अनेक प्रकार के पक्षी विचरण करते हैं।
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