26 से 28 जनवरी, 1948 तक राजाओं और प्रजामण्डल के प्रतिनिधियों का सम्मेलन बघाट के राजा दुर्गा सिंह की अध्यक्षता में सोलन के दरबार हाल में हुआ।
इसमें केवल शिमला की पहाड़ी रियासतों ने भाग लिया।
इस सम्मेलन में सभी ने “हिमालय प्रान्त" और "रियासती संघ" के प्रस्तावों पर विचार किया। साथ ही चम्बा, मण्डी, बिलासपुर, सुकेत, सिरमौर आदि शासकों व प्रजामण्डल के नेताओं से बातचीत करने का प्रस्ताव भी रखा गया।
इसी सभा में प्रस्तावित संघ का नाम “हिमाचल प्रदेश" रखा गया।
राजाओं की ओर से यह प्रस्ताव बाघल रियासत के कंवर मोहन सिंह ने रखा। एक अन्य प्रस्ताव में केन्द्रीय सरकार के राज्य मंत्रालय से यह निवेदन किया गया कि पंजाब की पहाड़ी रियासतों को भी प्रस्तावित “हिमाचल प्रदेश" में मिला दिया जाए तथा एक पूरा पहाड़ी प्राँत बना दिया जाए।
इस कार्य की उद्देश्य पूर्ति के लिए एक "नैगोशियेटिंग कमेटी" बनाई गई।
इस कमेटी में बघाट के राजा दुर्गा सिंह, जुब्बल के भागमल सौहटा, बुशैहर के ठाकुर सेन नेगी व सत्य देव बुशैहरी, बाघल के कंवर मोहन सिंह व हीरा सिंह पाल आदि आठ सदस्य शामिल थे।
इस समिति का कार्य अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए दूसरी पहाड़ी रियासतों से तथा भारत सरकार के राज्य मंत्रालय से बातचीत करना था।
इस बैठक में भारत को 1 मार्च, 1948 तक “हिमाचल प्रदेश" के अस्तित्व में आ जाने के बारे में सूचित करने का निर्णय लिया गया।